24 जनवरी, जन्म दिवस है जननायक का। वो नेता जो जीवनभर सामाजिक न्याय के लिए लड़ता रहा। कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर के पितौंझीया गाँव मे हुआ था, जिसे अब कर्पूरी ग्राम के नाम से जाना जाता है। वो दो बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। । वो बिहार के पहले गैर- कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में ग़रीब गुरबों की सबसे बड़ी आवाज़ बन कर उभरे थे। उन्होंने अपना सारा जीवन कुछ ऐसे व्यतीत किया की वो समाजिक आंदोलन के प्रतीक बन गए। राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था, ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए। जब करोड़ो रूपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं।आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़े हुए कुछ बातें।
'कर्पूरी डिविजन से पास हुए हैं' वो 1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बने इस दौरान उन्हें शिक्षा मंत्री का भी पद मिला हुआ था। उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया। इसके चलते उनकी आलोचना भी ख़ूब हुई लेकिन हक़ीक़त ये है कि उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुंचाया। इस दौर में अंग्रेजी में फेल मैट्रिक पास लोगों का मज़ाक 'कर्पूरी डिविजन से पास हुए हैं' कह कर उड़ाया जाता रहा।
इंदिरा के सामने अड़ गए, नहीं लिया सरकारी मदद
1974 में कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे का मेडिकल की पढ़ाई के लिए चयन हुआ, पर वे बीमार पड़ गए। दिल्ली के राममनोहर लोहिया हास्पिटल में भर्ती थे। हार्ट की सर्जरी होनी थी। इंदिरा गांधी को जैसे ही पता चला, एक राज्यसभा सांसद को वहां भेजा और उन्हें एम्स में भर्ती कराया। ख़ुद भी दो बार मिलने गईं, इलाज के लिए अमेरिका भेजने की पेशकश की, सरकारी खर्च पर। कर्पूरी ठाकुर को पता चला तो उन्होंने कहा कि वे मर जाएंगे पर बेटे का इलाज़ सरकारी खर्च पर नहीं कराएंगे। बाद में जेपी ने कुछ व्यवस्था कर न्यूज़ीलैंड भेजकर उनके बेटे का इलाज़ कराया।
फटा हुआ कोट पहन कर चले गए विदेश यात्रा पर
1952 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार विधायक बने थे। उन्हीं दिनों उनका आस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में चयन हुआ था। उनके पास कोट नहीं था, तो एक दोस्त से कोट मांगा गया, वह भी फटा हुआ था। खैर, कर्पूरी ठाकुर वही कोट पहनकर चले गए। वहां यूगोस्लाविया के मुखिया मार्शल टीटो ने देखा कि कर्पूरी जी का कोट फटा हुआ है, तो उन्हें नया कोट गिफ़्ट किया गया। आज जब राजनेता अपने महंगे कपड़ों और दिन में कई बार ड्रेस बदलने को लेकर चर्चा में आते रहते हों, ऐसे किस्से अविश्वसनीय ही लग सकते हैं।
फर्स्ट डिवीज़न से पास होने पर क्या हुआ
कर्पूरी ठाकुर जब मुख्यमंत्री थे तो उनके प्रधान सचिव थे यशवंत सिन्हा। वे आगे जाकर वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश मंत्री बने। किस्सा है कि एक दिन दोनों अकेले में बैठे थे तो कर्पूरी ठाकुर ने यशवंत सिन्हा कहा, ‘आर्थिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ जाना, सरकारी नौकरी मिल जाना, इससे क्या यशवंत बाबू आप समझते हैं कि समाज में सम्मान मिल जाता है? जो वंचित वर्ग के लोग हैं, उसको इसी से सम्मान प्राप्त हो जाता है क्या? नहीं होता है।
आगे उन्होंने अपना उदाहरण दिया।वे मैट्रिक में फर्स्ट डिविज़न से पास हुए थे। नाई का काम कर रहे उनके बाबूजी उन्हें गांव के समृद्ध वर्ग के एक व्यक्ति के पास लेकर गए और कहा, ‘सरकार, ये मेरा बेटा है, फर्स्ट डिविजन से पास किया है'। उस आदमी ने अपनी टांगें टेबल के ऊपर रखते हुए कहा, ‘अच्छा, फर्स्ट डिविज़न से पास किए हो? मेरा पैर दबाओ।’
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